पेश है शब्दकोश के कुछ जाने-पहचाने शब्द:
कपड़ा फींच\खींच लो, बरतन मईंस लो, ललुआ, ख़चड़ा,
खच्चड़, ऐहो, सूना न, ले लोट्टा, ढ़हलेल,सोटा, धुत्त मड़दे,
ए गो, दू गो, तीन गो, भकलोल, बकलाहा, का रे, टीशन (स्टेशन),
चमेटा ( थप्पड़), ससपेन (स्सपेंस), हम तो अकबका (चौंक) गए
, जोन है सोन, जे हे से कि, कहाँ गए थे आज शमावा (शाम) को?,
गैया को हाँक दो, का भैया का हाल चाल बा, बत्तिया बुता
(बुझा) दे, सक-पका गए, और एक ठो रोटी दो, कपाड़ (सिर),
तेंदुलकरवा गर्दा मचा दिया, धुर् महराज,अरे बाप रे बाप
, हौओ देखा (वो भी देखो), ऐने आवा हो (इधर आओ),
टरका दो (टालमटोल),का हो मरदे, लैकियन (लड़कियाँ),
लंपट, लटकले तो गेले बेटा (ट्रक के पीछे),
की होलो रे (क्या हुआ रे), चट्टी (चप्पल), काजक (कागज़),
रेसका (रिक्सा), ए गजोधर, बुझला बबुआ (समझे बाबू),
सुनत बाड़े रे (सुनते हो), फलनवाँ-चिलनवाँ, कीन दो (ख़रीद दो),
कचकाड़ा (प्लास्टिक), चिमचिमी (पोलिथिन बैग), हरासंख,
चटाई या पटिया, खटिया, बनरवा (बंदर), जा झाड़ के,
पतरसुक्खा (दुबला-पतला आदमी), ढ़िबरी, चुनौटी,
बेंग (मेंढ़क), नरेट्टी (गरदन) चीप दो, कनगोजर,
गाछ (पेड़), गुमटी (पान का दुकान), अंगा या बूशर्ट (कमीज़),
चमड़चिट्ट, लकड़सुंघा, गमछा, लुंगी, अरे तोरी के,
अइजे (यहीं पर), हहड़ना (अनाथ), का कीजिएगा (क्या करेंगे),
दुल्हिन (दुलहन), खिसियाना (गुस्सा करना), दू सौ हो गया,
बोड़हनझट्टी, लफुआ (लोफर), फर्सटिया जाना, मोछ कबड़ा,
थेथड़लौजी, नरभसिया गए हैं (नरवस), पैना (डंडा),
इनारा (कुंआ), चरचकिया (फोर व्हीलर), हँसोथना (समेटना),
खिसियाना (गुस्साना), मेहरारू (बीवी),
मच्छरवा भमोर लेगा (मच्छर काट लेगा),
टंडेली नहीं करो, ज्यादा बड़-बड़ करोगे तो मुँह पर बकोट (नोंच) लेंगे,
आँख में अंगुली हूर देंगे, चकाचक, ससुर के नाती, लोटा के पनिया,
पियासल (प्यासा), ठूँस अयले (खा लिए), कौंची (क्या) कर रहा है,
जरलाहा, कचिया-हाँसू, कुच्छो नहीं (कुछ नहीं), अलबलैबे,
ज्यादा लबड़-लबड़ मत कर, गोरकी (गोरी लड़की), पतरकी (दुबली लड़की),
ऐथी, अमदूर (अमरूद), आमदी (आदमी), सिंघारा (समोसा),
खबसुरत, बोकरादी, भोरे-अन्हारे,ओसारा बहार दो,
ढ़ूकें, आप केने जा रहे हैं, कौलजवा नहीं जाईएगा, अनठेकानी,
लंद-फंद दिस् दैट, देखिए ढ़ेर अंग्रेज़ी मत झाड़िए, लंद-फंद देवानंद,
जो रे ससुर, काहे इतना खिसिया रहे हैं मरदे, ठेकुआ,
निमकी, भुतला गए थे, छूछुन्दर, जुआईल, बलवा काहे नहीं कटवाते हैं,
का हो जीला, ढ़िबड़ीया धुकधुका ता, थेथड़, मिज़ाज लहरा दिया,
टंच माल, भईवा, पाईपवा, तनी-मनी दे दो,तरकारी,
इ नारंगी में कितना बीया है, अभरी गेंद ऐने आया तो ओने बीग देंगे,
बदमाशी करबे त नाली में गोत देबौ,
बड़ी भारी है-दिमाग में कुछो नहीं ढ़ूक रहा है,
बिस्कुटिया चाय में बोर-बोर,के खाओ जी, छुच्छे काहे खा रहे हो,
बहुत निम्मन बनाया है, उँघी लग रहा है, काम लटपटा गया
है, बूट फुला दिए हैं, बहिर बकाल, भकचोंधर, नूनू,
सत्तू घोर के पी लो, लौंडा, अलुआ, सुतले रह
गए, माटर साहब, तखनिए से ई माथा खराब कैले है,
एक्के फैट मारबौ कि खुने बोकर देबे, ले
बिलैया – इ का हुआ, सड़िया दो, रोटी में घी चपोड़ ले,
लूड़ (कला), मुड़ई (मूली), उठा के बजाड़ देंगे,
गोइठा, डेकची, कुसियार (ईख), रमतोरई (भींडी), फटफटिया (राजदूत),
भात (चावल), नूआ (साड़ी), देखलुक (देखा),
दू थाप देंगे न तो मियाजे़ संट हो जाएगा, बिस्कुट मेहरा गया है,
जादे अक्खटल न बतिया, एक बैक आ गया और हम धड़फड़ा गए,
फैमली (पत्नी), बगलवाली (वो), हमरा हौं चाहीं,
भितरगुन्ना, लतखोर, भुईयां में बैठ जाओ, मैया गे,
काहे दाँत चियार रहे हो, गोर बहुत टटा रहा है,
का हीत (हित), निंबुआ दू चार गो मिरची लटका ला चोटी में,
भतार (पति शायद), फोडिंग द कापाड़ एंड भागिंग खेते-खेते,
मुझौसा, गुलकोंच(ग्लूकोज़)।
कुछ शब्दों को आक्सफोर्ड डिक्शनरी ने भी चुरा लिया है।
और कुछ बड़ी-बड़ी कंपनियाँ इन शब्दों को अपनें
ब्रांड के रूप में भी यूज़ कर रही हैं। मसलन
- राजीव – रज्जीवा
- सुशांत – सुशांतवा
- आशीष – अशीषवा
- राजू – रजुआ
- रंजीत – रंजीतवा
- संजय – संजय्या
- अजय – अजय्या
- श्वेता – शवेताबा
कभी-कभी माँ-बाप बच्चे के नाम का सम्मान बचाने के लिए उसके पीछे जी लगा देते
है। लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं कि उनके नाम सुरक्षित रह जाते हैं।
- मनीष जी – मनिषजीवा
- श्याम जी – शामजीवा
- राकेश जी – राकेशाजीवा
अब अपने टाईटिल की दुर्गति देखिए।
- सिंह जी – सिंह जीवा
- झा जी – झौआ
- मिश्रा – मिसरवा
- राय जी – रायजीवा
- मंडल – मंडलबा
- तिवारी – तिवरिया
ऐसे यही भाषा हमारी पहचान भी है और आठ करोड़ प्रवासी-अप्रवासी बिहारियों की
जान भी।
Note: Above is reproduced from an email.